मनवर किनारे के दाह-संस्कार
देखकर, एक निरबंसिया के जीवन की
साधना कचोटती है।
दशरथ ने पुत्र-प्राप्ति के लिए
इसी मनवर के किनारे मखौड़ा में
एक शानदार यज्ञ किया था,
लोग और आख्यान ऐसा ही कहते हैं।
फिर भी 'रघुकुल रीति' के चलते
अपार प्रार्थनाओं के बाद मिले राम को|
नवब्याहता सीता के साथ वन भेज दिया,
हालाँकि दशरथ स्वयं भी जी न सके।
चले गए।
लेकिन मनवर पवित्र और पूज्य हुई।
दशरथ ने सृष्टि के वर्तुल में एक 'एग्जांपिल सेट' कर दिया।
कई पिता दशरथ-सी आकांक्षा रखने लगे,
राम-सा आज्ञाकारी पुत्र पाने की।
जबकि वे स्वयं दशरथ-से होते नहीं,
वे जीना चाहते हैं, सुख चाहते हैं।
इसीलिए
आज तक दूसरा राम कभी पैदा नहीं हुआ।
राम तो दूर, दशरथ होना भी मजाक नहीं है।
यही गाती मनवर नदी बहती रहती है।
राम-राम कहती रहती है।